ज्ञानवापी मस्जिद क्या है? बाबा विश्वनाथ मंदिर का संपूर्ण इतिहास

ज्ञानवापी मस्जिद क्या है? ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा इतिहास, बाबा विश्वनाथ मंदिर का संपूर्ण इतिहास| ज्ञानवापी एक मस्जिद का नाम है, जिसको पहले “आलमगीर मस्जिद” भी कहा जाता था| ज्ञानवापी मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर से लगा हुआ है| 1669 में औरंगजेब ने प्राचीन “विश्वेश्वर मंदिर” को तोड़कर यहां पर ज्ञानवापी मस्जिद को बना दिया था|

Gyanvapi Masjid

ज्ञानवापी अर्थ

ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है “ज्ञान का कुआं” या “ज्ञान का तालाब”|

ज्ञानवापी मस्जिद इतिहास

ज्ञानवापी मस्जिद, काशी विश्वनाथ से लगा हुआ मस्जिद है| आमतौर पर यह mana जाता है, कि यह काशी विश्वनाथ मंदिर में उपस्थित काफी सारे मंदिरों में से एक था| जिसको मुगल सम्राट औरंगजेब ने तोड़कर वहां पर एक मस्जिद का निर्माण कर दिया| ऐसा माना जाता है इससे पहले के चौथी और पांचवी शताब्दी के बीच में चंद्रगुप्त, जिसे महाराजा विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है, काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था, ऐसा इतिहास में उल्लेख है|

प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन ने लिखा है, काशी का काशी विश्वनाथ मंदिर मंदिर का वर्णन किया है| मोहम्मद गौरी के आदेश से मंदिर को काफी हद तक नष्ट कर दिया गया था| इस में उपस्थित कई सारे और भी हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया और बाद में इनका पुनर्निर्माण कुछ हिंदू राजाओं में कराया| अंत में मुगल सम्राट औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर में उपस्थित काशी विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बना दिया| बाद में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने ज्ञानवापी मस्जिद के पास ही इस समय बना हुआ काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया|

इतिहास के समय से ही काफी वादविवाद रहा है, और अंग्रेजों के समय में भी काफी सारी याचिका डाली गई थी, जिन पर सुनवाई भी हुई थी| औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था| इसका पहले नाम आलमगीर मस्जिद रखा गया था| इसके साथ-साथ मंदिर परिसर में उपस्थित श्रृंगार गौरी, श्री गणेश और हनुमान जी के स्थानों को भी नष्ट ध्वस्त कर दिया गया| लेकिन अभी भी काफी पुरानी जो दीवारें हैं, वह मंदिरों की ही दीवारें हैं ऐसा कई जांचों में सामने आ चुका है|

मंदिरों परिसर में ही पश्चिमी दीवार के सामने एक चबूतरा है, जहां श्रृंगार गौरी की एक मूर्ति है जो सिंदूर से बनी हुई है| साल में एक बार चैत्र नवरात्रि के दिन हिंदू पक्ष के द्वारा यहां पूजा की जाती है| लेकिन 1991 से पहले यहां पर हर रोज पूजा होती थी| 1991 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने रोक लगा दी| और साल में केवल एक बार पूजा के लिए छोड़ दी|

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ज्ञानवापी मस्जिद, वह पुरानी विश्वनाथ जी का स्थान है, जिसको ध्वस्त करके यह मस्जिद बनाई गई थी| बाद में हिंदू राजाओं ने इस मस्जिद के बगल में काशी विश्वनाथ मंदिर, जो कि वर्तमान में है का निर्माण किया था| मंदिर में उपस्थित शिवलिंग को मंदिर के पुजारी ने मंदिर परिसर में ही बने हुए कुए में डाल दिया था| जिसको आज काफी सारे लोग ज्ञानवापी तालाब कह रहे हैं|

शिव मंदिर का ऐतिहासिक दावा

हमारे पुराणों प्राचीन ग्रंथों के अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदि लिंग के रूप में “अभी मुक्तेश्वर शिवलिंग” स्थापित है| इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है| ईसा पूर्व 11 वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था| उसका सम्राट विक्रमादित्य ने उन्हें जीर्णोद्धार कराया था| शिव पुराण और लिंग पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में उल्लेख मिलता है, जिसमें काशी का ज्योतिर्लिंग प्रमुख माना गया है|

भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर बसी है शिव की नगरी काशी| भगवान शिव शंकर को यह काशी अत्यंत प्रिय है, इसीलिए उन्होंने इसे अपनी राजधानी यानी काशीनाथ रखा| काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच में 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है| इस कुआं के नाम पर मस्जिद का नाम बाद में रखा गया|

स्कंद पुराण में कहा गया है की भगवान शिव ने स्वयं लिंगा अभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से यह कुआं बनाया था| कुए का जल बहुत ही पवित्र माना जाता है| जिसे पीकर कोई भी व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करता है| यही जल उन्होंने अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिया था| इसीलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी पड़ गया| ज्ञानवापी कुआं में से निकाला गया जल काशी विश्वनाथ जी पर चढ़ाया जाता है|

ज्ञानवापी मस्जिद पर शोध

ज्ञानवापी मस्जिद पर हुए शोध के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद का आर्किटेक्चर कई आर्किटेक्चर का मिश्रण है| मस्जिद के गुंबद के नीचे मंदिर के स्ट्रक्चर जैसी दीवार नजर आती है| और मस्जिद में काफी सारे हिंदू मंदिर की शैली में स्ट्रक्चर नजर आता है|

ब्रिटिश काल में भी इस मंदिर के लिए काफी सारी याचिकाएं दायर की गई थी| उस समय एक विदेशी फोटोग्राफर के द्वारा फोटो लिया गया था| जो कि 1863 से 1870 के बीच में लिया गया| इस फोटो में कई जगह कैप्शन में लिखा है “ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं बनारस” तस्वीरों में हनुमान जी की मूर्ति, घंटी और हिंदू नक्क्कशी दिखाई दे रही है|

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है और शोध भी बताते हैं, कि ज्ञानवापी विवादित ढांचे की जमीन के नीचे 100 फिट ऊंचा विश्वेश्वर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है| और दीवारों पर देवी देवताओं के क्षेत्र हैं|

ज्ञानवापी मस्जिद में काफी सारी दीवारों पर स्वास्तिक, त्रिशूल और ओम के निशान प्राचीन काल के पाए गए हैं| और Khandit रूप में श्रृंगार गौरी और नंदी की प्रतिमा भी पाई गई है|

ज्ञानवापी मस्जिद का जो मुख्य गुंबद है उसके नीचे एक शंकु आकार स्ट्रक्चर है| दोनों के बीच करीब 6 से 7 फुट का गैप है| नीचे की गुंबद को गुंबद नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह शंकु आकार है| ऐसा हिंदू स्थापत्य शैली में ही बनता है| यानी कि यह एक पुराना मंदिर है| जिस तोड़कर नए स्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है|

प्राचीन इतिहास से अब तक क्या हुआ है सारी घटनाएं

आदि काल में हिंदू पुराणों के अनुसार, विशालकाय मंदिर के रूप में आदि लिंग “अभी मुक्तेश्वर शिवलिंग” स्थापित किया गया था| राजा हरिश्चंद्र ने इस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, और सम्राट विक्रमादित्य ने भी दोबारा से इस मंदिर की जीर्णोद्धार करवाया था|

1194 मोहम्मद गौरी ने लूटा और कई बार ध्वस्त किया| मंदिर को स्थानीय लोगों ने राजाओं की मदद से दोबारा से झीणोउद्धार किया|

1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया|

1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इस मंदिर को दोबारा तोड़ने के लिए सेना भेज दी| लेकिन काफी सारे हिंदुओं के वहां पर जमा होने और प्रतिरोध करने के कारण काशी विश्वनाथ मंदिर को छोड़कर, अन्य 63 मंदिरों को तोड़ दिया गया|

1659 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया और मूल जगह पर एक मस्जिद का निर्माण कराया| जिसे हम आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं|

1830 में ग्वालियर की महारानी ने मंदिर का मंडप बनाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई|

1884 में ज्ञानवापी मस्जिद का पहला जिक्र राजस्व दस्तावेज में जामा मस्जिद ज्ञानवापी के तौर पर दर्ज किया गया|

1984 में विश्व हिंदू परिषद ने ताकि सारे हिंदू संगठनों के साथ मिलकर ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर मंदिर बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया और कोर्ट में याचिका भी दायर की|

1998 में कोर्ट ने मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी, लेकिन मस्जिद प्रबंधन ने इसे इलाहाबाद कोर्ट में चुनौती दी| इसके बाद कोर्ट द्वारा सर्वे करने की अनुमति रद्द कर दी गई|

2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई शुरू हुई|

2021 में महिलाओं द्वारा कोर्ट में याचिका दायर की गई और मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की आज्ञा मांगी और सर्वे की मांग की| फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातत्व सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी|

2022 कोर्ट के आदेश के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा हुआ| अब सुनवाई शुरू होगी|

सितंबर 2022, ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई और जज ने इस मामले को सुनने के योग्य बताया| यानी कि अब कोर्ट में इस फैसले की पूरी सुनवाई की जाएगी|